असम कैबिनेट ने शुक्रवार (8 जनवरी 2023) को राज्य की मूल मुस्लिम आबादी के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण को मंजूरी दे दी। इस फैसले के तहत असम के पाँच स्वदेशी मुस्लिम समुदायों- गोरिया, मोरिया, देशी, सैयद, जोल्हा के सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन की प्रक्रिया शुरू होगी।
जानकारी के मुताबिक, इस फैसले से पहले जनता भवन में कैबिनेट बैठक आयोजित हुई, जिसके बाद कैबिनेट मंत्री जयंत मल्ला बरुआ ने बताया कि कैबिनेट ने चार क्षेत्र विकास निदेशालय, असम का नाम बदलकर अल्पसंख्यक मामले और चार क्षेत्र, असम निदेशालय करने का फैसला किया है। इस फैसले के पीछे का कारण है कि मूल जनजातीय अल्पसंख्यकों का व्यापक सामाजिक-राजनीतिक और शैक्षणिक उत्थान किया जाए।
रिपोर्ट्स के अनुसार, 2011 में जो जनगणना हुई थी, उसके मुताबिक, असम की 34% से अधिक आबादी मुसलमानों की है, जो लक्षद्वीप और जम्मू-कश्मीर के बाद सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में तीसरी सबसे बड़ी आबादी है।
ये भी बताया जा रहा है कि राज्य की कुल आबादी 3.1 करोड़ में से 1 करोड़ से अधिक मुस्लिम हैं। जिनमें से केवल 40 लाख मूल निवासी, असमिया भाषी मुस्लिम हैं, और बाकी बांग्लादेशी मूल, बंगाली भाषी आप्रवासी हैं। इससे पहले अक्टूबर में, हिमंत सरकार ने स्वदेशी मुस्लिम समुदायों का सामाजिक-आर्थिक मूल्यांकन करने की योजना की घोषणा की थी।
मुख्यमंत्री ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा था, “ये निष्कर्ष सरकार को राज्य के स्वदेशी अल्पसंख्यकों के व्यापक सामाजिक-राजनीतिक और शैक्षिक उत्थान (एसआईसी) के उद्देश्य से उपयुक्त उपाय करने के लिए मार्गदर्शन करेंगे।”
हिमंता सरकार ने गोरिया, मोरिया, जोलाह, देसी और सैयाद समुदायों को मूल असमिया मुसलमानों के रूप में वर्गीकृत किया था, जिनके पास पहले पूर्वी पाकिस्तान और अब से प्रवास का कोई इतिहास नहीं है।
माना जाता है कि ये समुदाय 13वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य इस्लाम में परिवर्तित हुए थे, जिनकी मातृभाषा बंगाली नहीं असमिया ही है और इनकी संस्कृति हिंदुओं से मिलती-जुलती है। ऐसे ही गोरिया-मोहिया, जिन्होंने अहोम राजाओं के लिए काम किया था वो हकीकत में कोच राजबोंग्शी लोग थे, जो इस्लाम में परिवर्तित हो गए थे। इसी तरह जिन मुस्लिमों को ब्रिटिश छोटानागपुर से चाय बागानों में काम करने के लिए लाए वो जोल्हा हो गए और सूफी संतों के अनुयायी सैयद हो गए।