ग्रेटर नोएडा। देशभर मैं दशहरा बड़े धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में ग्रेटर नोएडा वेस्ट में स्थित गांव जिसको रावण का पैतृक गांव में माना जाता है, वहां पर दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता है और यहां रावण का भी दहन नहीं होता है… आइये चलते हैं इस गांव में और जानते हैं कि इस गांव का महत्व क्या है और यहां पर दशहरा क्यों नहीं मनाया जाता है।
उत्तर प्रदेश ग्रेटर नोयडा के बिसरख गांव में भी रावण का मंदिर है। यहां ऐसी मान्यता है कि यहा रावण का ननिहाल था। नोएडा के शासकीय गजट में रावण के पैतृक गांव बिसरख के साक्ष्य मौजूद नजर आते हैं। इस गांव का नाम पहले विश्वेशरा था जो रावण के पिता विश्रवा के नाम पर पड़ा था। अब इस गांव को बिसरख के नाम से जाना जाता है। गौतम बुध नगर के सूरजपुर मुख्यालय से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गांव की सड़क वर्तमान में ग्रेटर नोएडा वेस्ट में आता है यहां सड़क मार्ग से यहां पहुंचा जा सकता है पहले यह इलाका ग्रेटर नोएडा के शहरी जंगलों के बीच में था लेकिन अब बड़ी-बड़ी गगनचुंबी इमारतें बनने के बाद इस क्षेत्र का विकास तेजी से हुआ है।
जब आप गांव बिसरख में पहुंचते हैं तो वहां गौतम बुध नगर का सबसे पुराना थाना बिसरख मिलता है जिसे अंग्रेजों के समय में बनाया गया था, तब यह इलाका जिला गाजियाबाद में आता था। लेकिन उत्तरप्रदेश में नए जिलों के सृजन के साथ यह गौतमबुद्धनगर(नोएडा) जिले में चला गया। इस थाने के पीछे ही स्थित है, एक प्राचीन शिव मंदिर जिसने रावण के मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। गाँव के बुजुर्ग बताते है बिसरख गांव का जिक्र शिवपुराण में भी किया गया है। कहा जाता है कि त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था। इसी गांव में उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी। उन्हीं के घर रावण का जन्म हुआ था। अब तक इस गांव में 25 शिवलिंग मिल चुके हैं, एक शिवलिंग की गहराई इतनी है कि खुदाई के बाद भी उसका कहीं छोर नहीं मिला है। ये सभी अष्टभुजा के हैं। रावण का गांव बिसरख। यहां न रामलीला होती है, न ही रावण दहन किया जाता है। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है। मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है। इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है। रावण के मंदिर को देखने के लिए लोगो यहां आते रहते है कुछ आस्था के कारण तो कुछ अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए..ऐसे कुछ लोगो से हमने बात की ..
जब हमने गाँव वालो से बातचीत की तो उनका दर्द साफ झलकता दिखाई दिया….गाँववासियों को मलाल है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित किया जाता है जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित एवं क्षत्रिय गुणों से युक्त था। जब देशभर में जहाँ दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गाँव नोएडा जिले के बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है। इस बार भी दशहरे के त्योहार को लेकर यहाँ के लोगों में कोई खास उत्साह नहीं है। बिसरख गाँव में न ही यहाँ रामलीला का मंचन होता है और रावण का पुलता फूंखा जाता हैं। इस गाँव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है।
बिसरख में शिव मंदिर में मिले महंत रामसाद शास्त्री मिले का कहना है कि पहले इस गांव में रामलीला का आयोजन किया गया था। उस दौरान गांव में एक मौत हो गई। इसके चलते रामलीला अधूरी रह गई। ग्रामीणों ने दोबारा रामलीला का आयोजन कराया, उस दौरान भी रामलीला के एक पात्र की मौत हो गई। वह लीला भी पूरी नहीं हो सकी। तब से गांव में रामलीला का आयोजन नहीं किया जाता और न ही रावण का पुतला जलाया जाता है।