नागरिकता कानून की धारा 6ए पर सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने अहम टिप्पणी की। पूर्वोत्तर के कई राज्य उग्रवाद और हिंसा से प्रभावित हैं। इस बात को रेखांकित करते हुए उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि देश को बचाने के लिए जरूरी फैसले करने के नजरिए से सरकार को “स्वतंत्रता और छूट” दी जानी चाहिए।
असम पर लागू नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए का उल्लेख करते हुए कहा कि सरकारों को राष्ट्र की समग्र भलाई के लिए समझौता करना होगा। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “हमें सरकार को भी वह छूट देनी होगी। आज भी उत्तर पूर्व के कुछ हिस्से हैं, हम उनका नाम नहीं ले सकते, लेकिन यह इलाके उग्रवाद से प्रभावित, हिंसा से प्रभावित राज्य हैं। हमें देश को बचाने के लिए सरकार को जरूरी फैसले / समायोजन करने की छूट देनी होगी।”
बता दें कि नागरिकता कानून पर सुनवाई कर रही पांच जजों की पीठ में प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं। शीर्ष अदालत की यह पीठ असम में अवैध प्रवासियों से संबंधित नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए की संवैधानिकता पर सुनवाई कर रही है। कानून की इस धारा की संवैधानिक वैधता की जांच करने के लिए अदालत ने 17 याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करने का फैसला लिया है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने असम समझौते के तहत आने वाले लोगों की नागरिकता से जुड़े मुद्दों से निपटने के लिए एक विशेष प्रावधान के रूप में नागरिकता अधिनियम में धारा 6ए जोड़ा है। एक दिन पहले इसी मामले में शीर्ष अदालत ने सरकार से असम में नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए के लाभार्थियों का डेटा मांगा। अदालत ने कहा कि उसके सामने ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिससे पता चल सके कि 1966 और 1971 के बीच बांग्लादेशी प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रभाव इतना बड़ा था कि सीमावर्ती राज्य की जनसांख्यिकीय और सांस्कृतिक पहचान पर इसका प्रभाव पड़ा।
नागरिकता अधिनियम की धारा 6ए को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि असम के स्वदेशी लोग अपनी ही मातृभूमि में भूमिहीन और विदेशी बनकर रहने को बाध्य हैं। कानून का यह हिस्सा केवल पूर्वोत्तर राज्य पर लागू है। बता दें कि सीजेआई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ साफ कर चुकी है कि अदालत असम के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) की वैधता पर विचार नहीं कर रही है। अदालत इस मामले को नागरिकता कानून की धारा 6ए के पहलुओं तक ही सीमित रखेगी।